चाय दुकान से स्कूल तक शिक्षा का सफ़र

चाय दुकान से स्कूल तक शिक्षा का सफ़र

  • Education
  • By Ranvijay Rai and Binod Sinha
  • 05 Aug, 2022

बाल मज़दूरी एक ऐसा अभिशाप है जो समाज में व्याप्त गैर-बराबरी को और ज्यादा बढ़ाता है। बाल मज़दूर बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में विकास के अवसरों को हासिल करने में पीछे रह जाते हैं। शिक्षा हीं ऐसा माध्यम है जो बच्चों की क्षमता को निखार कर उनके भविष्य का निर्माण करता है जिससे वे अपने लिए उचित अवसर का लाभ उठा पायें। कोई भी बच्चा बाल-मज़दूरी में लिप्त हो कर या किसी अन्य कारणों से पढ़ायी से वंचित हो कर न पिछड़ जाये इस उद्देश्य से ऑक्सफैम इंडिया उत्तर प्रदेश के 6 जिलों में सघन रूप से कार्य कर रहा है।

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वर्ष 2021 में, ऑक्सफैम इंडिया द्वारा उत्तर प्रदेश के छः जिलों के 104 ग्राम पंचायतों से 104 शाला से बाहर बच्चों का चिन्न्हिकरण किया गया था, जिसमें तकरीबन 5% बच्चे पूर्ण रूप से बाल मज़दूरी में लिप्त थे। चिन्न्हिकरण के पश्चात सभी बच्चों को विद्यालय में लाने की मुहिम जारी की गयी। चुकी बच्चों के सीख का स्तर अत्यंत कम था, उनके लिये मोहल्ला क्लास के माध्यम से ब्रिज क्लास दिया गया।

इसी क्रम में, विद्यालय से बाहर बच्चों की पहचान के दौरान ऑक्सफैम इंडिया के शिवकुमार की मुलाक़ात कक्षा 4 की पढ़ाई के बाद विद्यालय छोड़ बाल मज़दूरी करते हुए दयाशंकर से हुई। दयाशंकर प्रतापगढ़ स्थित अपने गाँव पूरे सेवक राय में चाय के दुकान में काम करते हुए पाया गया। वह अपने बूढ़े दादा के साथ मिल कर चाय बनाने और उसे बेचने के कार्य में लिप्त था। दयाशंकर एक प्रथम पीढ़ी के पढ़ाई करने वाला बच्चा है। उसके पिता कामता प्रसाद पाँचवी तक पढ़े हैं। बातचीत से पता चला कि जब दयाशंकर तीसरी कक्षा में गया तब कोरोना महामारी के कारण स्कूल बंद हो गया और उसका स्कूल जाना बंद हो गया। चुकी घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, वह अपने दादा के साथ गाँव में ही चाय बेचने के कार्य में लग गया। चाय बेचने में उसका मन लगने लगा और वह शिक्षा से दूर होता चला गया।

18 माह बाद जब विद्यालय पुनः खुला तब भी दयाशंकर पुनः स्कूल नहीं गया। कोरोना के दौरान जब स्कूल बंद पड़ा था, गाँव में ऑनलाइन शिक्षा की कोई सुविधा नहीं थी जिससे शिक्षा के प्रति उसका लगाव बिलकुल खत्म हो गया। बालक बड़ा ही बातूनी था। वह चाय की दुकान में सब से मीठी-मीठी बातें किया करता और प्रसन्नता पूर्वक चाय बेचता। शिवकुमार ने एक दिन दयाशंकर के माता-पिता से इस बारे में बात की और उन्हें समझाया कि अभी इस बालक की उम्र पढ़ने लिखने की है न कि चाय बेचने की। यह उसके शिक्षा के अधिकार का हनन है और इससे वह जीवन में अन्य बच्चों से पीछे रह जायेगा। परंतु उसके माता पिता पर इसका असर नहीं हुआ। फिर शिवकुमार ने ग्राम प्रधान एवं बी0डी0सी0 से इस बारे में बात की और उनके माध्यम से मिल कर माता-पिता को पुनः स्कूल भेजने के लिये समझाया गया। अंततः दयाशंकर की माता कैलाशी देवी बच्चे को स्कूल भेजने के लिये राजी हुई और कहा कि हम अपने बच्चे को कल से नहला-धुला कर स्कूल भेजेंगे।

5 अप्रैल से पुनः दयाशंकर का नामांकन प्राथमिक विद्यालय पूरे सेवक राय के कक्षा 5 में कराया गया। हालांकि बच्चे का दाखिला स्कूल में हो गया परंतु इसकी सीख का स्तर काफी पीछे हो गया। दयाशंकर से साथ बाकी बच्चों को भी दूसरे कक्षा में दाखिला कर दिया गया परंतु इस दौरान सीख के स्तर में पढ़ाई न होने के करण काफी हानी हुई जिससे उन्हें पढ़ने और समझने में काफी दिक्कतें हो रहीं । इसके चलते बच्चों को मोहल्ला क्लास द्वारा अतिरिक्त शिक्षा भी ऑक्सफैम इंडिया द्वारा दी जा रही है।

दयाशंकर ने स्कूल में पढ़ाई शुरू कर कहा कि “अब मैं चाय बेच कर अपने समय को नहीं बर्बाद करूंगा। मुझे पढ़ लिख कर एक बड़ा आदमी बनना है।“  दयाशंकर जब स्कूल में नामांकन  कराने गया तब प्रधानाध्यापिका पूनम सिंह ने उससे  अच्छे तरीके से बात किया और उसे रोज स्कूल आने के लिए कहा। दया शंकर बातूनी है इस प्रकार से वह प्रथम दिन स्कूल में बाल गीत कराया तो वह सभी अध्यापक का पसंदीदा बन गया। प्रधानाध्यापिका पूनम सिंह दयाशंकर का समय-समय पर अवलोकन खुद करती रहती है और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है जिसके कारण दयाशंकर अब रोज स्कूल जाता है।

प्रधानाध्यापिका पूनम सिंह का कहना है कि बच्चों का चिन्न्हिकरण, उनके माता पिता को परामर्श देना, समुदाय के साथ चर्चा और समुदाय के नेता को इस प्रक्रिया में शामिल करने से अब बच्चों के ड्रॉप-आउट की संख्या में काफी कमी आई है। बच्चों की रुचि को बनाये रखने के लिये उन्हें पढ़ाई से पूर्व खेल-कूद, कविता पाठन तथा अन्य रचनात्मक कार्यों द्वारा जोड़ा जाता है। विद्यालय में बाल मंच का भी गठन किया गया जिसके द्वारा बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाता है, उनके मुद्दों की वे खुद पहचान कर उसे एस0एम0सी0 तक पहुँचाते हैं। इन सब कार्यों से ड्रॉप आउट कम होने के साथ सीख के स्तर में भी सुधार आ रहा है।

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