शारदा नदी बेसिन में सिंचाई की पद्धतियों पर एक अनुभव

शारदा नदी बेसिन में सिंचाई की पद्धतियों पर एक अनुभव

पुराने समय से लेकर आधुनिक समय तक समय के साथ-साथ फसलों की सिंचाई के तरीके में काफी बदलाव हुए हैं। पुराने समय में जहां संसाधनों की गैर मौजूदगी के चलते किसानों के लिए फसलों की सिंचाई करना काफी मुश्किल भरा काम हुआ करता था और बेड़ी, रहट और ढेकुली से सिंचाई हुआ करती थी। तो वही आज के समय में सिंचाई व्यवस्था काफी आसान हो गई है और किसान सोलर पम्प ट्यूबवेल आदि से सिंचाई कर रहें हैं। इसके बावजूद तमाम क्षेत्रों में आज भी सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों की फसलें बारिश के पानी पर निर्भर हैं। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 करोड़ हेक्टेयर है, जिसमें वर्तमान में 16.2 करोड़ हेक्टेयर (51 प्रतिशत) जमीन पर खेती की जाती है, जबकि लगभग 4 प्रतिशत जमीन पर चारागाह, 21 प्रतिशत भूमि पर वन तथा 24 प्रतिशत भूमि बिना किसी उपयोग (बंजर) की है। 24 प्रतिशत बंजर भूमि में 5 प्रतिशत परती भूमि भी शामिल है,जिसमें प्रतिवर्ष  फसलें न बोकर तीसरे या पांचवें वर्ष बोई जाती हैं, जिससे भविष्य में जमीन उपजाऊ हो सके।

बेड़ी से सिंचाई - पुराने समय में जहां पर तालाबों या झीलों के पानी से सिंचाई होती थी वहां पर बेड़ी की आवश्यकता होती थी, इसमें दो व्यक्ति एक बांस या दूसरी लकड़ी से बना एक बड़े बर्तन को रस्सी से बांधकर पानी को तालाब से खींचकर नाली में डालते हैं जो खेतों को जाती है।

ढेकुली से सिंचाई - ढेकुली सिंचाई की एक परम्परागत सिंचाई व्यवस्था होती थी। कुँओं से पानी निकालने का सबसे सुलभ साधन ढेकुल का होता था, जो लीवर के सिद्धांत पर कार्य करने वाली एक संरचना है। इसमें वाई के आकार के पतले वृक्ष के तने को सीधा जमीन में कुएं के पास गाड़ कर छाप दिया जाता है और दूसरे सिरे पर रस्सी से बांधकर एक कुंड़ (कुएं से पानी निकालने का बर्तन) को लटका कर कुएं के अन्दर ले जाते है और पानी को ऊपर खींच लेते हैं।

रहट से सिंचाई - जिन क्षेत्रों में फसलों की सिंचाई करने के लिए कोई दूसरे संसाधन नहीं होते थे वहां के किसान अपने खेतों के पास एक कुआं खोदकर उसमें लोहे की बनी रहट नामक मशीन लगा देते थे और अपनी फसल की सिंचाई कर लेते थे परन्तु धीरे-धीरे कुँओं की संख्या में भी कमी आती गयी। सिंचाई का एक साधन रहट किसानों से दूर होता गया। कहीं-कहीं यह मशीन आज भी देखने को मिलती है।

तालाब से सिंचाई - देश में प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों प्रकार के तालाबों का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। इनके द्वारा सर्वाधिक सिंचाई  भारत के तमिलनाडु, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश राज्यों में की जाती है। इसके बाद दक्षिणी बिहार, दक्षिणी मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी पूर्वी राजस्थान का स्थान आता है, जहां प्राकृतिक एवं कृत्रिम दोनों प्रकार के तालाब मिलते हैं। देश के कुल सिंचित क्षेत्र के 9 प्रतिशत भाग की सिंचाई तालाबों द्वारा होती है। उत्तर प्रदेश राज्य में शारदा नदी बेसिन के क्षेत्र सीतापुर, पलिया के कुछ स्थानों पर तालाब से सिंचाई की जाती है।

 कुआँ - कुओं का निर्माण सर्वाधिक उन्हीं क्षेत्रों में हुआ है, जहां चिकनी बलुई मिट्टी मिलती है क्योंकि इससे पानी रिसकर धरातल के अन्दर चला जाता है तथा भूमिगत जल के रूप में भण्डारित हो जाता है। देश में तीन प्रकार के कुएं सिंचाई एवं पेय जल के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं।

कच्चे कुएं, पक्के कुएं, नल कूप - देश की कुल सिंचित भूमि का कुँओं द्वारा सींचे जाने वाला अधिकांश भाग गुजरात ,महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में है। यहां लगभग 50 प्रतिशत भूमि की सिंचाई कुँओं तथा नल कूपों द्वारा ही की जाती है। इन राज्यों के अतिरिक्त हरियाणा, बिहार, तमिल नाडु, आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों में भी कुँओं तथा नल कूपों द्वारा सिंचाई की जाती है। प्रथम योजना काल में देश में नल कूपों की संख्या मात्र 3,000 थी, जो वर्तमान में लगभग 57 लाख हो गयी है। देश में सर्वाधिक नल कूप पम्प सेट तमिल नाडु में पाये जाते हैं, जबकि महाराष्ट्र का दूसरा स्थान है। नल कूपों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। लेकिन शारदा नदी बेसिन क्षेत्रों में अब इसका उपयोग नहीं किया जाता है।

नहर से सिंचाई - नहरें देश में सिंचाई की सबसे प्रमुख साधन हैं और इनमें 40 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई की जाती है। हमारे देश में सर्वाधिक विकास उत्तर के विशाल मैदानी भागों तथा तटवर्ती डेल्टा के क्षेत्रों में किया गया है क्योंकि इनका निर्माण समतल भूमि एवं जल की निरन्तर आपूर्ति पर निर्भर करता है। शारदा नदी बेसिन में जिला पीलीभीत के माधवटांडा व पूरनपुर तथा लखीमपुर खीरी में भीरा, बिजुआ, मैलानी इत्यादि क्षेत्रों में बहुतायत मात्रा में नहरों से सिंचाई की जाती है।

सतही सिंचाई प्रणाली - भारत में अधिकतर कृषि योग्य क्षेत्रों में सतही सिंचाई होती है। इसमें प्रमुख है, नहरों से नालियों द्वारा खेत में पानी का वितरण किया जाना तथा एक किनारे से खेत में पानी फैलाया जाना। इस प्रणाली में खेत के उपयुक्त रूप से तैयार न होने पर पानी का बहुत नुकसान होता है।  यदि खेत को  समतल कर दिया जाये तो इस प्रणाली में भी पानी की बचत की  जाती है। आजकल लेजर तकनीक से किसान अपना  खेत समतल कर सकते है। इससे जलोपयोग दक्षता में वृद्धि होती है। फलस्वरूप फसलों की पैदावार बढ़ जाती है।

फव्वारा सिंचाई - फव्वारा द्वारा सिंचाई एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा पानी का हवा में छिड़काव किया जाता है और यह पानी भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरता है। पानी का छिड़काव दबाव द्वारा छोटी नोजल या ओरिफिस में प्राप्त किया जाता है। कृत्रिम वर्षा चूंकि धीमे धीमे की जाती है, इसलिए न तो कहीं पर पानी का जमाव होता है और न ही मिट्टी दबती है। इससे जमीन और हवा का सबसे सही अनुपात बना रहता है और बीजों में अंकुर भी जल्दी फूटते हैं। लेकिन शारदा नदी बेसिन के क्षेत्रों में इस पद्धति को प्रयोग न की मात्रा में होता है।

सोलर पम्प से सिंचाई – सोलर पम्प से सिंचाई एक नई विधि है, जिससे न तो बिजली की जरूरत होती हैं और न ही किसी ईंधन की जरूरत होती है। इसमें एक मोटर होता है, जो जमीन से पानी खींचता है और उसको चलाने के लिए सोलर पैनल लगे होते हैं जो सूरज की किरणों से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और उससे मशीन चलती है।

सिंचाई में भूजल का उपयोग - उपरोक्त सभी संसाधनों का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। यदि बात की जाये उत्तर प्रदेश के शारदा नदी बेसिन क्षेत्रों की, तो इसमें पाया गया की जिला लखीमपुर खीरी के पलिया से लेकर धौरहरा तक सबसे ज्यादा सिंचाई में भूजल का प्रयोग किया जाता है। इन क्षेत्रों जमीन के अन्दर से भूजल को ट्यूबवेल व मोटर ट्यूबवेल के माध्यम से निकाला जाता है। जबकि शारदा नदी इन से गुजरती है। शारदा नदी बेसिन के समुदायों में किसानों से बात की गई तो पता चला कि इन क्षेत्रों नहरों का विकास सम्भव नहीं है। जिसके कारण नदी के पानी का उपयोग सिंचाई हेतु नहीं किया जा सकता है।

Shailjakant Mishra works with Grameen Development Services in Lakhimpur Kheri

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