छत्तीसगढ़ बजट 2021: वनाधिकार के नजरिये से

छत्तीसगढ़ बजट 2021: वनाधिकार के नजरिये से

आदिवासियों व वन-निर्भर समाज के वनाधिकार के लिए इस बजट में क्या है?  

छत्तीसगढ़ का वर्ष 2021 का बजट १ मार्च को विधानसभा में पेश किया गया । वनाधिकार के नजरिये से बजट में कुछ बातें महत्वपूर्ण तो थी, लेकिन मंशानुरूप बजटीय प्रावधान न होने से क्रियान्वयन सम्बंधित व्यावहारिक अड़चन बने रहने की सम्भावना रहेगी । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद, वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन के लिए जो वादे किये गए थे, विशेषकर, ग्राम सभाओं का अपने जंगल पर अधिकार और प्रबंधन के सन्दर्भ में, इस बजट में उस वादे को पूरी तरह से तोड़-मोड़ दिया गया है । यह देखते हुए कि, वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अब दो वर्ष ही बचे है, यह ज़रूरी होता कि यह बजट जंगल के सामुदायिक प्रबंधन की राह को ठोस धरातल में लाने के लिए ग्राम सभाओं के लिए उपयुक्त बजटीय प्रावधान करता । इस बजट भाषण में बहुत सी कल्याणकारी योजनाओं के लिए न्याय शब्द का उपयोग किया गया है, जैसे गोधन न्याय योजना या राजीव गाँधी किसान न्याय योजना, और जहाँ वनाधिकार के प्रावधान के लिए वाकई में न्याय शब्द की ज़रुरत थी, वहां वन आश्रितों को सहायता शीर्षक रखा गया है ।

क्या कहा गया है बजट भाषण में?

बजट भाषण में वनाधिकार क्रियान्वयन के संदर्भ में कहा गया है कि — पूर्व में निरस्त किये गये वन अधिकार मान्यता पत्रों की पुनः समीक्षा की जाकर 24,827 नये वन अधिकार पत्रों सहित अब तक 4,36,619 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रों का वितरण किया जा चुका है। वन अधिकार पत्र धारी वनवासियों को भी किसानों के समान अधिकार देते हुए इस वर्ष किसान न्याय योजना का लाभ दिया गया है। 2,175 सामुदायिक वन संधारण अधिकार ग्राम सभाओं को दिये गये हैं। सामुदायिक वन अधिकार पत्र के रूप में वितरित वन भूमि पर फलदार वृक्षों के रोपण को प्रोत्साहित किया जायेगा।  

यदि, सच में 2,175 ग्राम सभाओं को सामुदायिक वन प्रबंधन के अधिकार दिए गए है, तो यह उपलब्धि है, परन्तु, इन गाँव की सूची उपलब्ध न होना संशय पैदा करता है । बजट में, इन ग्राम सभाओं के लिए सामुदायिक वन संसाधन संरक्षण व प्रबंधन के लिए अलग से बजटीय प्रावधान करना, अपने वादे को पूरा करने की दिशा में एक सार्थक कदम होता ।

वनोपज आधारित उत्पादों को बेचने के लिए शासन द्वारा एकीकृत सी-मार्ट स्टोर की परिकल्पना अच्छी है, जहाँ समुदाय इमली, महुआ, हर्रा, बहेरा, आंवला, शहद एवं फूलझाड़ू, जैसे उत्पाद बेच सके. लेकिन, उन्हें, अपनी मेहनत का सही मूल्य मिले, और लाभ के लिए जंगल का विनाश न हो, यह सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है । 

बजट में लाख पालन को बढ़ावा देने के लिए ब्याज रहित ऋण की सुविधा देने और लाख पालन को भी कृषि के समकक्ष दर्जा प्रदान किये जाने की बात कही गयी है । लाख उत्पादन, दरअसल कृषि-वानिकी का ही अंग है, जिसे प्रभावी सामुदायिक वन प्रबंधन के साथ बेहतर ढंग से किया जा सकता है । 

बजट में जिक्र किया गया है कि प्रदेश के आदिवासी इलाकों से कोदो, कुटकी एवं रागी को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अन्य लघु वनोपज की भांति खरीदा जायेगा । आदिवासी परिवारों की आय बढ़ाने और उसका उपभोग करने वालों का पोषण बढ़ाने वाला कदम हो सकता है। पर, इसके लिए बजटीय प्रावधान, जो अभी नहीं किया गया है, के अलावा, अन्य योजनाओं को ऐसे संशोधित किया जाना पड़ेगा, जिससे, इन अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहन मिले । जैसे, वनभूमि में की जाने वाली खेती के लिए इन अनाजों के बीज, जैविक खाद व सहजीवी पौधों की उपलब्धता, न कि, मनरेगा जैसी योजनाओं से मेडबंधी व खेत गहरीकरण कर धान या मक्के के बीजों की मुफ्त आपूर्ति करना |

बजट में बताया गया है कि, राज्य शासन की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी के अंतर्गत अब तक 1385 नालों पर 71,831 कार्य पंचायत विभाग द्वारा स्वीकृत किये गये थे। इनमें से 51,742 कार्य पूर्ण भी हो चुके हैं। कैम्पा मद से भी, वन क्षेत्र में स्थित 1796 नालों के लिए 7 लाख हेक्टेयर जल ग्रहण क्षेत्र में कार्य स्वीकृत किये गये हैं। इस वर्ष भी, 392 करोड़ की लागत से 441 नालों का चयन कर जल संरक्षण कार्य किया जाएगा है। प्रदेश में 4908 चारागाह निर्माण स्वीकृत किये गये थे, जिनमें से 2904 चारागाह बनाये गए है । साथ ही, 9133 गोठान बनाये जाने है, जिनमे से 5014 गोठान बन गए है।  दरअसल, नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी, गाँव के प्राकृतिक संसाधनों को मानव श्रम से पुनर्जीवित व प्रबंधित करने की अभिनव पहल हो सकती है, यदि, समुदाय को इन संसाधनों पर ग्राम सभा के जरिये नियंत्रण व प्रबंधन के अधिकार दे कर पारंगत किया जाये । इसके लिए ज़रूरी प्रशिक्षण और मानव श्रम के कौशल उन्नयन के लिए स्पष्ट बजटीय प्रावधान ज़रूरी है। 

प्रदेश के 36,000 हेक्टेयर क्षेत्र में बिगड़े वनों के सुधार कार्य हेतु ₹ 257 करोड़ का प्रावधान रखा गया है, जो कि वन विभाग द्वारा ही खर्च किया जायेगा । नदियों के संरक्षण हेतु नदी तट वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत 15 लाख पौधों के रोपण हेतु ₹ 7 करोड़ का प्रावधान रखा गया है, जिसे शासन को समुदाय की भागीदारी से करवाना चाहिए ।        

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